“है लव मेरा हिट हिट सोनिये, तो फिर कैसी खिट पिट” जैसी गानों में तुकबंदी भिडाने के चक्कर में हमारे so called कवी लोग अर्थ का अनर्थ तो कर ही चुके हैं पर अब देश पे ही नहीं देश के गानों में भी सोनिये, मन्मोनिए ने राज कर लिया है | इश्किया जैसी मूवी जिसमे classical style से लेकर मस्ती भरे गाने हैं (गुलज़ार, विशाल और सुखविंदर की तिकड़ी का एक और शाहकार – इब्न बतूत्ता) पर इतने फालतू रीमिक्स डालना क्या ज़रूरी था? खैर थोड़े समय पहले फिल्मों के गानें का दुसरे लोग remix करते थे तो इस डर से मूवी बनाने वाले खुद ही गाने की मटिया पलीद कर देते हैं | एक छोटी सी आशा जगी थी पियूष मिश्रा से जिन्होंने गुलाल में कितने भाव की कवितायें इतनी सुन्दरता से लिखी है | पर गुलाल के बाद वो पता नहीं कहाँ गए |
जहां साहिर लुधियानवी जैसे लोग प्यार की अभिव्यक्ति को नए नए आयाम देते थे – ‘तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं, तुम किसी ग़ैर को चाहोगे तो मुश्किल होगी’, वहीं अब प्यार दिल्ली की सर्दी हो चुका है | meaningful गानों से, double meaning गानों पे आके अब हम meaningless गानों पे अटके हैं – भाई तोता मिर्ची खा गया इसमें कवी कहना क्या चाहता है हमें समझ में नहीं आया | या फिर ये mindblowing माहिया क्या होता है ? शमिता शेट्टी को भेजा उड़ा देने वाला साथी चाहिए? यदि आप इससे भी न बौखलाए हो तो काजोल और अजय का वो गाना जरूर सुनिए : “सहेली जैसा सैंय्या“, अब इसके क्या क्या और कैसे कैसे अर्थ निकालने हैं ये हम आप के ऊपर छोड़ते हैं | और हद यहीं तक नहीं है, ये मोहतरमा बताती हैं की इनको मिला है पहेली जैसा सैंय्या, दिल्ली में बरेली जैसा सैंया| ये लाइन सुनते ही चीखने का मन किया “ये क्या हो रहा है बेटा दुर्योधन” | सुभाष घई जो एक समय अपनी फिल्मों में इतने हिट गाने देते थे उनकी युवराज में भी एक गाना है जो लगता है कोई air hostess गा रही है – “आजा मैं हवाओं पे उड़ा के ले चलूँ” |
खैर दुनिया AIDS, Cancer का इलाज निकाले ले पर कमबख्त इश्क का इलाज नहीं हो सकता | जब मरीज खुद बीमार होना चाहे तो क्या करेगा डॉक्टर और क्या करेगी दवा | इस valentine diwas पे बशीर बद्र की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी – “मुझे इश्तेहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियां | जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो”
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